Hai Itna Hi Ab Waasta Zindagi Se Ghazal by Hairat Gondvi
Hai Itna Hi Ab Waasta Zindagi Se
Hairat Gondvi’s ghazal, “Hai Itna Hi Ab Waasta Zindagi Se,” delves into the profound connections between life’s twists, happiness, destiny, and the ever-changing world. These verses illuminate the poet’s deep contemplations and the enigmatic nature of existence.
है इतना ही अब वास्ता ज़िंदगी से हिन्दी में
है इतना ही अब वास्ता ज़िंदगी से
की मैं जी रहा हूँ तुम्हारी ख़ुशी से
ग़रीबी अमीरी है क़िस्मत का सौदा
मिलो आदमी की तरह आदमी से
बदल जाए गर बे-क़रारों की दुनिया
तो मैं अपनी दुनिया लुटा दूँ ख़ुशी से
समझते हैं हम खेल दुनिया के ग़म को
हमारी ख़ुशी है तुम्हारी ख़ुशी से
बजा चाँद रौशन है सूरज से लेकिन
ये सूरज चमकता है किस रौशनी से