Mohabbaton Mein Dikhaawe Ki Dosti Na Mila Ghazal by Bashir Badr
Mohabbaton Mein Dikhaawe Ki Dosti Na Mila
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मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला हिन्दी में
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था
फिर उस के बा’द मुझे कोई अजनबी न मिला
ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला
बहुत अजीब है ये क़ुर्बतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला