Sarcastic Ghazal – To Kya Jaan Hamaari Jaa Rahi Hai by Karzdaar Mayank
To Kya Jaan Hamaari Jaa Rahi Hai
Sarcastic Ghazal – To Kya Jaan Hamaari Jaa Rahi Hai by Karzdaar Mayank Is More Of A Sarcastic Ghazal But With A Sense Of Humor And Pain At The Same Time. With So Many Stanzas, It Covers Vast Aspects Of Life And Society. Karzdaar Talks About Prostitutes, How They Put Up Their Make-Up, And Set Out To Feed Their Helplessness. Then You Could Also Find The Idea Of ‘Duniya Mein Kitna Ghum Hai Mera Ghum Kitna Kam Hai’ In The Couplets Where He Says ‘Humein Maut Niyaari Aa Rahi Hai’.
तो क्या जान हमारी जा रही है हिन्दी में
तो क्या जान हमारी जा रही है
उनकी मूरत सवारी जा रही है
सुर्ख होंठ कजरा आँखों में
मजबूरी बाज़ारी जा रही है
बह रही है ज़ुल्फ़ रुखसार पे उसके
सादगी-ए-आम उजाड़हि जा रही है
बेशर्मी की हद भी होती होगी कहीं
यहाँ तो बात तुम्हारी आ रही है
पहले बेसबब खाती रही उस की क़ुरबत
अब फुरक़त की बेक़रारी खा रही है
ग़म, हुस्न, शेर-औ-शराब, हिज्र
मस्त जिंदगी गुजारी जा रही है
मंदिर में बैठे पूजा कर रहे हैं
शायद छवि सुधारी जा रही है
मचल जाता है दिल सुहागनों पर
फिर आज तो इक क्वारी जा रही है
हुई हैं बर्फ निगाहें महफ़िल में
किसी की सूरत निहारी जा रही है
रोज़ मरता है कोई न कोई यहाँ पर
हमें मौत नियारी आ रही है
बेचारगी का हाल न पूछ ‘कर्ज़दार’
जाने साँस की उधारी आ रही है