Sarcastic Ghazal – Tamasha Na Karo by Karzdaar Mayank
Tamaasha Na Karo
Explore the profound verses of Karzdaar Mayank’s Sarcastic Ghazal, “Tamasha Na Karo.” These poetic lines delve into themes of separation, deceit, and the complexities of life and love. Discover the poet’s evocative reflections on the human experience and emotions.
तमाशा ना करो हिन्दी में
बिछड़ते हुए कहते हैं हताशा ना करो
मर रहे हो तो मर जाओ तमाशा ना करो
यादें, वादे, कसमें, किस्से फरेब होते हैं
हमें झूठा समझने का इरादा ना करो
बला का हुस्न है उसका होश में तो हो
इस मुफलिसी पे ये शक्ल इरादा ना करो
जल ने लगा था जिस्म के उनको आना था
मेरी चिता पे आंखों का बहाना ना करो
कितनी आसानी थी उनको हमपे मर जाने की
ऐसे झूठों से जीवन सुहाना करो
सुना है खूब है दौलत तुम्हारे हमसफ़र की
इश्क़ ग़म- ए – ज़िन्दगी है खज़ाना करो
मेरी मौत से ही ‘कर्ज़दार’ उसकी आफ़त तो टली
अब जीने दो उन्हें मौत का फसाना ना करो