Pasand Shayari – Masala-e-Pasand Nazm by Karzdaar Mayank
Masala-e-Pasand
Explore the thought-provoking Pasand Shayari – Masala-e-Pasand Nazm by Karzdaar Mayank, as he delves into the intricacies of life and the complexities of human emotions. His poetry uncovers unspoken desires, the enigmatic nature of love, and the profound beauty of human connections. Join him on a journey through the nuanced and heartfelt aspects of existence.
मसला-ए-पसंद हिन्दी में
यूं तो एसा भी लगता है कभी
सारे के सारे अजब हैं सभी
कहने को सब से मन ऊभ जाता है
अपने साथ पूरी ज़िन्दगी बिताता है
खैर मुद्दा ज़माना रहा ही नहीं
और असल मुद्दा कभी कहा ही नहीं
मुद्दा है पसंद हो बयां नहीं की गई
मुद्दा है कफ़न जो ज़िन्दगी ये जी गई
और फिर ये दास्तां किसकी दास्तां नहीं
वो अनबुझी सी प्यास किस की प्यास नहीं
कोई ज़्यादा देर सुहाता नहीं है
कोई दिल से दूर जाता नहीं है
आखिर वो इतना पसंद है क्यूं आता है
और फिर आता है तो वो ही क्यूं आता है
मसला सारा पसंद पर आया है
जो पसंद आया है, वो पसंद आया है
या तो अब उसे खुलकर कहने की ठान लिया जाए
या में उसकी हसरत ही नहीं ये मान लिया जाए
अबकी जब उसे मेरी आरज़ू ही नहीं
उसकी आरज़ू करते जाना ज़िंदगी नहीं
फिर ये बात समझ आती होती तो क्या न होता
शायद ‘ कर्ज़दार ‘ दिल ना होता, तू ना होता