Ye Mere Sheher Ka Ek Aur Haadasa Hoga – Aabid Adeeb’s Ghazal
Ye Mere Sheher Ka Ek Aur Haadasa Hoga
Ye Mere Sheher Ka Ek Aur Haadasa Hoga – Aabid Adeeb’s Ghazal – Explore the poignant verses of Aabid Adeeb’s ghazal “Shehar Ka Haadisa,” where the poet reflects on the changing dynamics of his city and the search for one’s identity and place in it.
ये मेरे शहर का इक और हादिसा होगा हिन्दी में
ये मेरे शहर का इक और हादिसा होगा
वो कल यहाँ मिरा मेहमान बन चुका होगा
तलाश में हूँ किसी की मैं कब से सरगर्दां
उसी तरह कोई मुझ को भी ढूँढता होगा
मिरी तरह से कोई चीख़ता है राहों में
मिरी तरह कोई दुनिया को देखता होगा
लगा के आएगा चेहरा कोई नया शब में
वो जिस को बैठ के दिन में तराशता होगा
शनासा चेहरे भी लगने लगे हैं बेगाने
अब अपना वक़्त ही शायद बदल रहा होगा
उदास उदास सा खोया हुआ सा रहता है
कुछ उस से भी कोई कह कर बदल गया होगा
थका थका सा उसी दर पे आ के बैठा था
न पूछा होगा किसी ने तो चल दिया होगा
जहाँ पहुँच के क़दम डगमगाए हैं सब के
उसी मक़ाम से अब अपना रास्ता होगा