Love and Ego Shayari – Zaroori To Nahin by Karzdaar Mayank
Zaroori To Nahin
Love and Ego Shayari – Zaroori To Nahin by Karzdaar Mayank – Explore the profound world of emotions through Karzdaar Mayank’s poignant shayari, ‘Zaroori To Nahin?’ These verses delve deep into the human experience of love, ego, and hesitation. It captures that moment of uncertainty when two hearts are entangled in a web of unspoken feelings. Karzdaar beautifully portrays the dilemma of confessing one’s emotions, where ego and love clash, leaving both parties waiting for a resolution. As he questions societal norms and expectations, Karzdaar sparks a thought-provoking conversation about the complexities of human relationships and self-discovery.
ज़रूरी तो नहीं हिन्दी में
जब मिलूं खुदी में मिलूं, ज़रूरी तो नहीं
इंतेज़ार करना और करते जाना, ज़रूरी तो नहीं
ना मैं झुकता हूँ ना तुम ही किस बात की अना है
हर रोज़, हर वक़्त मरते रहना, ज़रूरी तो नहीं
गर से मैं ही पहल कर दूं मंजूर तो होगा,
लाज़्मी तुम्हारा शरीक होना, ज़रूरी तो नहीं
कमाल करते हो रोके रोके दम नहीं घुटता
घुटने पर भी उनका क़ुबूल करना, ज़रूरी तो नहीं
हम कह रहे हैं शेर पे शेर इशारा देते हुए
हमारा कहना उन का समझ जाना, ज़रूरी तो नहीं
लो सौदे की बात कर लें, मेरे दाम पर मुझे खरीद लें
बाज़ार में हर चीज़ का बिक जाना, ज़रूरी तो नहीं
अब क्या करें रस्म-ए-दुनिया में आदमी ही झुका!
फिर ‘कर्ज़दार’ आदमी का झुक जाना, ज़रूरी तो नहीं