Zafar Iqbal’s Famous Ghazal – Khamoshi Achchhi Nahin
Khamoshi Achchhi Nahin Inkaar Hona Chaahiye
Explore the thought-provoking verses of Zafar Iqbal’s Famous Ghazal – Khamoshi Achchhi Nahin, where poetry becomes a canvas for reflection on life’s intricacies. His words unravel the importance of expression over silence, the symbolism in dreams, and the transformation of love and relationships. Join him on a journey of profound introspection and poetic beauty.
ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए हिन्दी में
ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए
ये तमाशा अब सर-ए-बाज़ार होना चाहिए
ख़्वाब की ताबीर पर इसरार है जिन को अभी
पहले उन को ख़्वाब से बेदार होना चाहिए
डूब कर मरना भी उसलूब-ए-मोहब्बत हो तो हो
वो जो दरिया है तो उस को पार होना चाहिए
अब वही करने लगे दीदार से आगे की बात
जो कभी कहते थे बस दीदार होना चाहिए
बात पूरी है अधूरी चाहिए ऐ जान-ए-जाँ
काम आसाँ है इसे दुश्वार होना चाहिए
दोस्ती के नाम पर कीजे न क्यूँकर दुश्मनी
कुछ न कुछ आख़िर तरीक़-ए-कार होना चाहिए
झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर ‘ज़फ़र’
आदमी को साहब-ए-किरदार होना चाहिए