Bashir Badr’s Famous Ghazal – Kahin Chand Rahon Mein Kho Gaya
Kahin Chand Rahon Mein Kho Gaya
Explore the evocative verses of Bashir Badr’s Famous Ghazal – Kahin Chand Rahon Mein Kho Gaya, as he delves into the realm of lost love and memories that linger like a haunting melody. His poetry beautifully encapsulates the essence of love’s journey, the poignant moments of separation, and the indelible marks that the past leaves on the heart. Join him on a journey through emotions that resonate with the soul.
कहीं चाँद राहों में खो गया हिन्दी में
कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई
मिरी दास्ताँ का उरूज था तिरी नर्म पलकों की छाँव में
मिरे साथ था तुझे जागना तिरी आँख कैसे झपक गई
भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिजक गई
तिरे हाथ से मेरे होंट तक वही इंतिज़ार की प्यास है
मिरे नाम की जो शराब थी कहीं रास्ते में छलक गई
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब न हो सकीं
तिरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई