Ae Sharif Insano – Sahir Ludhianvi’s Nazm against “Jang”
Ae Sharif Insano (Jang)
Ae Sharif Insano – Sahir Ludhianvi’s Nazm against “Jang” |
SOURCE :
Book : Kulliyat-E-Sahir Ludhianvi (Pg. 210)
Author : SAHIR LUDHIANVI
Publication : Farid Book Depot (Pvt.) Ltd |
Sahir Ludhianvi’s nazm is a heartfelt reflection on the futility of war. It urges us to reconsider our choices and opt for peace instead. Ludhianvi questions why we shed blood when we could be working together to build a better world. In essence, it’s a poignant call for a more peaceful and harmonious existence.
ऐ शरीफ़ इंसानों (जंग) हिन्दी में
ख़ून अपना हो या पराया हो
नस्ल-ए-आदम का ख़ून है आख़िर
जंग मशरिक़ में हो कि मग़्रिब़ में
अमन-ए-आलम का ख़ून है आख़िर
बम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूह-ए-तामिर ज़ख़्म ख़ाती है
खेत अपने जलें कि औरों के
ज़िस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है
टैंक आगे बढ़ें कि पीछे हटें
कोक धरती की बाँझ होती है
फ़तेह का जश्न हो कि हार का सोग
ज़िंदगी मैय्यतों पे रोती है
जंग तो ख़ुद ही एक मसला है
जंग क्या मसालों का हल देगी
आग और ख़ून आज बाँटेगी
भूख और एहतियाज़ कल देगी
इस लिए ऐ शरीफ़ इंसानों
जंग तलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शम्मा जलती रहे तो बेहतर है
2
बर्तरी के सबूत की ख़ातिर
ख़ून बहाना ही क्या ज़रूरी है
घर की तरीक़ियाँ मिटाने को
घर जलाना ही क्या ज़रूरी है
जंग के और भी तो मैदान हैं
सिर्फ़ मैदान-ए-किश्त-ओ-ख़ून ही नहीं
हासिल-ए-ज़िंदगी ख़िराद भी है
हासिल-ए-ज़िंदगी जुनून ही नहीं
आओ इस तिरा-बख़्त दुनिया में
फ़िक्र की रौशनी को आम करें
अमन को जिन से तफ़वीज़ पहुँचे
ऐसी जंगों का इहतिमाम करें
जंग वहशत से बर्बारियत से
अमन तहज़ीब ओ इर्तिक़ा के लिए
जंग मर्ग-आफ़रीन सियासत से
अमन इंसान की बाक़ा के लिए
जंग इफ़्लास और ग़ुलामी से
अमन बेहतर निज़ाम की ख़ातिर
जंग बहत्की हुई क़यादत से
अमन बेबस आवाम की ख़ातिर
जंग सरमाए के तसल्लुत से
अमन जमहूर की ख़ुशी के लिए
जंग जंगों के फ़लसफ़े के ख़िलाफ़
अमन पुर-अमन जिंदगी के लिए